हमारे जीवन में गुरु की भूमिका सफलता के लिए बहुत जरूरी है

हमारे जीवन में गुरु की भूमिका सफलता के लिए बहुत जरूरी है 
  [ ROLE OF GURU IN OUR LIFE ] 


GOOD MORNING, नमस्कार मैं मोटिवेशनल SPEAKER आज आपके सामने एक छोटी सी कहानी लेकर आया हूँ जो आपको एक बड़ी सिख देने वाली है कहते कि एक राज्य में एक युवती रहती थी।  जिसका नाम वैराग्यवती था जो श्री हरि विष्णु जी की परम भक्त थी और नित्य मंदिर में जाती थी और भगवान् का भजन - कीर्तन करती थी।  एक दिन जब वह भगवान् की पूजा - अर्चना कर रही थी।  तो उसी मंदिर के पीछे एक चोर चोरी का प्रयास था। तभी उस चोर ने उस वैराग्यवती की आवाज़ सुनी तो उस चोर  लगा कि यह जो युवती है इसको आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है। 

फिर उस चोर ने एक साधू बाबा का वेश बनाकर मंदिर में उस वैराग्यवती के पास गया और जैसे ही वैराग्यवती ने उस बाबा को देखा तो उसने प्रणाम किया और बोली की बाबा जी आप प्रसाद आदि जल ग्रहण करेंगे।  तो उस बाबा ने कहा अवश्य ग्रहण करेंगे।  जब उस युवती ने बाबा जल ग्रहण करने को देने लगी तो उस साधू - बाबा ने कहा रुको और कहने लगा की तुमने कभी किसी से दीक्षा ली है तो वैराग्यवती ने कहा नहीं महाराज।  तो उस बाबा ने कहा की हम ये जल ग्रहण नहीं कर सकते है यह कहकर वहां से जाने लगा तो वैराग्यवती बोली महराज आप ही मुझे दीक्षा दे दीजिये।

  ताकि हम आपको जल आदि ग्रहण करा सके। तो उस साधू ने कहा इसके लिए तुमको हमारे आश्रम में आना पड़ेगा जो जंगल में है।  तो वैराग्यवती बोली ठीक है महराज हम आपके आश्रम में आएंगे।  तब साधू कहने लगा आपको अपना सारा धन और गहने लेकर आना पड़ेगा  दीक्षा के लिए तो कहा ठीक महाराज। और जब वह जंगल गयी तो उस चोर ने जो साधू का रूप धारण किये था वह वैराग्यवती को सारे गहने लेकर एक पेड़ से बांध दिया और कहा हम सात दिन बाद वापस आएंगे।  तब तुमको खोलेंगे और दीक्षा प्रदान करेंगे। 

इस तरह से धीरे - धीरे  एक दिन बिता  दो दिन बिता और उधर वैराग्यवती के घर पर चिंता सताने लगी।  और उसके माता - पिता उसको ढूढ़ने लगे और जब वह ढूढ़ते - ढूढ़ते जंगल पहुंचे तो देखा क्या  की वैराग्यवती एक विशाल पेड़ से बंधी थी।  तब उसके माता पिता बोले बेटी ये कैसे हुआ और किसने तुमको बंधा है।  वैराग्यवती ने गुरु बाबा की पूरी बात बताई तो पिता जी कहने लगे की वह कोई साधू -बाबा  नहीं है वह एक चोर है जिसने तुमको बेवकूफ बनाकर तुमसे सारा धन लेकर यहाँ से चला गया। 


वैराग्यवती बोली नहीं पिता जी बाबा जी ने कहा है की वे सात दिन बाद आकर हमको खोलेंगे और हमे दीक्षा देंगे। पिता जी कहने लगे बेटी चोर वापस नहीं आएगा तुमको मैं खोल देता हूँ तुम घर वापस चलो। तो वैराग्यवति कहने लगी की आप लोग घर जाइये हम बिना दीक्षा लिए घर वापस नहीं आएंगे।  तब उसके माता पिता निरास होकर वापस लौट जाते है।  इसी  तरह धीरे - धीरे चार दिन बीत गए तब श्री हरि विष्णु जी ने नारद को भेजा और कहाँ की बी=वैराग्यवति को समझा कर उसे पेड़ से खोलकर वापस भेज देना।  जब नारद जी वैराग्यवती के आते है और सब बताते है तो उस वैराग्यवती ने जाने से मना कर दिया और बोली  अगर गुरु की महिमा और वचन सत्य न होते तो आपके दर्शन इतनी  आसानी से दुर्लभ थे  आप वापस जाये मैं अपने गुरु बाबा की आज्ञा नहीं टाल  सकती। और नारद जी वापस चले जाते है। 


इस तरह से चार - पांच और छठा दिन भी बीत गया।  लेकिन वो साधू बाबा नहीं आया। अब सातवां दिन आ चूका था और वैराग्यवती की हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी लेकिन उसकी आस गुरु में लगी थी और यह सब भगवान् देख रहे थे।  तब श्री हरि विष्णु ने कहा अब मुझे ही कुछ करना होगा क्योंकि मेरी भक्त बड़ी संकट में है। और जब वे वैराग्यवती के पास पहुंचे तो उसने भगवान् को प्रणाम किया।  भगवान् ने कहा की वैराग्यवती तुम जिसका इंतज़ार कर रही हो वो आज भी किसी के घर में चोरी का प्लान बना रहा है।  वो आज भी नहीं भी आने वाला है तुम घर वापस जाओ बेटी।  तो वैरागवती ने कहा की वो जरूर आएंगे बिना उनके मैं इस बंधन से मुक्त नहीं हो सकती हूँ।  भगवान् ने कहा इसको हम अभी खोले दे रहा हूँ।  तब वैरागवती ने कहा नहीं प्रभु ये गुरु बाबा का बंधन है जिसकी वजह से आप सबके दर्शन हो पाए है। वरना आप सबके दर्शन करना बहुत ही दुर्लभ था। 


तब श्री हरि विष्णु ने नारद जी से कहा की आप उस चोर साधू को लेकर आइये जिसने वैराग्यवति को इस पेड़ से बांधा है। नारद जी चल दिए उस चोर को लाने के लिए और जब चोर को लेकर आये तो उस चार ने वैराग्यवती से माफी मांगी और कहा की हम एक चोर तो यह सुनकर उस वैरागवती ने उस चोर को माफ कर दिया और अपने घर वापस चली गयी। 

इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि अगर आप गुरु की बताई बातों का पालन करते है तो आप सब कुछ प् सकते है चाहे वो भगवान् ही क्यों न हो और आप हर एक सपनो को पूरा कर सकते है सही मार्गदर्शन से इसलिए गुरु का होना जीवन में बहुत जरूरी है।  किसी ने खूब कहा है --------



                                                          गुरु करो दस पांचा। 
                                                                    जब तक मिले न कोई साँचा। 














































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